दिनेश पाठक वह बहुत चालाक हैं| मैं इस बात को भली-भांति जानता था| वे पहुँचती वहीँ जहाँ से उनका मतलब बन रहा होता| सब कुछ जानने के बाद भी देखता मैं भी था लेकिन कनखियों से क्योंकि डर लगता था कि कहीं कोई देख न ले| मेरी मंशा भांप न …
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कुबूलनामा चार : पत्नी, वो और हँसी-ख़ुशी के 22 बरस
उनसे मेरी मुलाकात एक हादसे के साथ हुई| कह सकते हैं कि हादसे में उनकी प्रमुख भूमिका भी रही| क्या बताऊँ, कैसे बताऊँ, और न बताऊँ तो क्यों न बताऊँ? असल में यह बात कोई 22 वर्ष पुरानी है| उन दिनों मैं भगवन श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या में था| रक्तदान …
Read More »कुबूलनामा-एक : उत्तरकाशी की यात्रा में मैं, वो और उनकी अदाएँ
बात थोड़ी पुरानी है| मैं उत्तराखण्ड में उत्तरकाशी जिले के भ्रमण पर था| तभी अचानक मेरी नजर पड़ी| वह इठलाती, बलखाती चली आ रही थी| देख वह भी रही थी मुझे पूरे मनोयोग से और मैं तो खैर अपलक निहारे ही जा रहा था| पलक झपका भी हो तो मुझे …
Read More »कुबूलनामा-तीन : प्यार हो तो काली साड़ी विद पीला-सफेद बॉर्डर वाली से, नहीं तो न हो
एकदम टटका कॉलेज से निकला था| उम्र अल्हड़ थी| जीवन की ऊँच-नीच से वाकिफ़ नहीं था| जो दोस्त कहें वही सही| कुछ सीनियर्स के साथ बैठकी चल रही थी| वे अक्सर काली साड़ी विद पीला-सफ़ेद बॉर्डर की बातें करते| समझ नहीं आ रहा था कुछौ| पूछ बैठे तो पड़ा कंटाप| …
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