दिनेश पाठक
लखनऊ में जनेश्वर मिश्र पार्क के गेट नम्बर सात के सामने मुख्य सडक पर एक गड्ढा बीचोबीच एक तेज मोड़ पर है| इस पर मेरा ध्यान रोज ही जाता है| हमारे सिस्टम ने इसे कई बार भरा लेकिन ये मुआँ फिर अपनी औकात दिखाकर सिस्टम को चिढ़ाने लगता है| मेरे पास कोई दस्तावेजी सुबूत तो नहीं हैं लेकिन पार्क तक लगभग रोज जाने की वजह से मैं कह सकता हूँ कि इस छोटे से लेकिन खतरनाक गड्ढे से सरकारी महकमे की ठन सी गई प्रतीत होती है|
कल शाम मैं पार्क से लौट रहा था तो गड्ढे ने मुझे आवाज दी| बोला-पाठक जी, बहुत बड़े पत्रकार बनते हो| रोज यहीं से गुजरते हो| कभी गाड़ी से तो कभी पैदल| मेरी भी दुआ-सलाम ले लिया करो| मैं भी काम का हूँ| मैंने बरबस गड्ढे से माफ़ी मांगी और पूछा कि बताएं, भला आपके लिए मैं क्या कुछ कर सकता हूँ| ये श्रीमान बोले-आप कुछ न करो| मेरी मदद तो सरकारी महकमा करता ही है लेकिन मैं आप की तरह शांत नहीं रह सकता| मैं दोहरा चरित्र भी नहीं जी सकता| मैं जैसा हूँ, वैसा ही दिखना चाहता हूँ| मुझे कोई शर्म नहीं है|
मैंने कहा-अरे भाई गड्ढा जी, मैं एक सजग भारतीय नागरिक हूँ| लोग भी मुझे पढ़ा-लिखा कहते हैं| नौजवान हमें सुनते भी हैं| लोग कहते हैं कि मैं अच्छा वक्ता हूँ| पढ़ता और लिखता हूँ, यह मैं भी कह रहा हूँ|
गड्ढा बोला-मेरी एक बात शासन-सत्ता तक पहुँचाओ तो जानूँ| मैंने बोला-कहिये| यह तो मेरे लिए सबसे आसान है| गड्ढा बोला-देखिए भारतीय कानून कहता है कि भ्रष्टचारी होना जुर्म है| प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक खुद को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाला बताते हैं| लेकिन किसी में दम हो तो मेरा भ्रष्टाचार रोक कर दिखाएँ| मैं भ्रष्टाचारी था, हूँ और रहूँगा| यह मैं पूरे दावे से कह रहा हूँ| भ्रष्टचार में आकंठ तक डूबे मुझे कई बरस हो गए|
अब ये सरकारी महकमे कुछ भी कर लें, मैं फिर उन्हें चिढ़ाने को तैयार खड़ा हो जाता हूँ| कई बार ये हमें तारकोल और गिट्टी से भरने की कोशिश करते हैं तो कई बार सीमेंट और गिट्टी तक का इस्तेमाल ये हमें भरने के लिए करते हैं, पर इधर ये भरकर जाते हैं और उधर मैं इनका घटिया माल ठीक समुद्र की तर्ज निकाल कर फेंक देता हूँ और कहता हूँ-तेरा तुझको अर्पण…|
महकमे के लोग मेरे जबर्दस्त फैन हैं| यह जानने के बावजूद कि मेरी वजह से आये दिन लोग घायल हो रहे हैं| दोपहिया वालों की तो मैं कभी भी टाँगे तोड़ने की स्थिति में हूँ| चार पहिया वालों की पहिया भी अगर मेरे दिल से गुजर जाए तो कमानी उनकी भी ढीली कर देता हूँ| फिर भी सरकारी तंत्र मेरे से बहुत खुश रहता है| ये कहते हैं कि मेरे भ्रष्टाचारी होने से वे भी खुश हैं| उन्हें कोई दिक्कत नहीं है| मैंने तो अपनी यूनियन भी बना ली है| अब मैं अखिल भारतीय भ्रष्टाचार समाज का संरक्षक हूँ| मैंने आपका ध्यान इसलिए दिलाया क्योंकि मैं देख रहा हूँ कि आप भी बड़े लोगों की तरह होते जा रहे हैं|
मैं लोगों को भ्रष्ट बनाने का एक ट्रेनिंग स्कूल खोलने जा रहा हूँ| यह स्कूल कामयाब होगा, इस बात की गारंटी है| मैंने कहा-नहीं| आपका यह स्कूल नहीं चलेगा| बोले-मैंने सर्वे कराया है| लोगों का जबर्दस्त समर्थन मिला है हमारे स्कूल को| जैसे-जैसे संसाधन जुटते जाएँगे, हम स्कूल चेन पूरे देश में बढ़ाते जाएँगे| अभी लखनऊ वाला स्कूल शुरू करने वाला हूँ| तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है| इसका उद्घाटन मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री से नहीं करवाऊंगा| इसके लिए समान विचार धारा के अग्रणी भाई-बंधु आएँगे| सूची बन गई है|
मैंने पूछा-इस स्कूल की जरूरत आखिर क्यों पड़ी| बोले-मोदी जी ने टैक्स चोरों को ज्यादा रकम जमाकर अपनी बची हुई रकम को एक नम्बर करने की मान्यता दी थी| इसके पहले भी सरकारों ने अनेक भ्रष्टचारी पकड़े, जेल भेजे लेकिन ज्यों-ज्यों कार्रवाई हुई, हमारी यूनियन मजबूत होती गई| हम अपने जिस भ्रष्टाचार की वजह से जेल जाते हैं, उसी की वजह से पहले जेल से और फिर बाद में मुकदमे से बाइज्जत छूट जाते हैं| हमारा नेटवर्क तो इतना मजबूत हो चला है कि उसे समझने के लिए आपको विजिलेंस, एंटी करप्शन विभागों तक जाना होगा|
शासन में बैठे लोगों तक अपनी जड़ें जमानी होगी| तब इसका सच जान पाएँगे| हमारा संगठन इतना मजबूत है कि हर दफ्तर में हमारे सदस्य हैं| सब एक-दूसरे की मदद करते हैं|
स्कूल की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि हम नौजवानों के लिए शार्ट टर्म कोर्स लेकर आ रहे हैं| जहाँ सभी तरह का प्रशिक्षण देंगे| जिससे जब वे पढ़ लिखकर निकलें और समाज के बीच जाएँ तो उन्हें किसी तरह की कोई दिक्कत न हो| हम एक प्रमाण-पत्र भी देंगे और परिचय पत्र भी, जो पूरे देश में समान रूप से लगेगा| इसके लागू होने से भ्रष्टाचार करने वालों में समानता का भाव आ जाएगा|
ट्रेंड इसलिए कर रहे हैं जिससे सभी का समान विकास हो| मैंने कहा-यह सब आप न कर पाएँगे| गड्ढा बोला-करके दिखाएँगे| आप किसी को बता दो| हम कोई आज से तो यह काम कर नहीं रहे हैं| मैंने तो बस सभी चीजों को एक कर संगठन खड़ा किया और अब स्कूल की बारी है| और देख लेना, अब यह कारवां दिन-ब-दिन आगे ही बढ़ेगा| हम रुकने वाले नहीं हैं| यह हमारा चैलेंज है| हमारा अगला लक्ष्य इसे कानूनी दर्जा दिलाने का है|