दिनेश पाठक
बात 1995 की है। बसपा प्रमुख मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं। पहला मौका था, जब उन्होंने तब के आईजी जोन इलाहाबाद रहे हाकम सिंह को समीक्षा के दौरान निलंबित कर दिया था। यह सूचना पुलिस महकमे में दहशत लेकर आई थी। किसी आईजी का इस तरह का पहला निलंबन था।
जिस दिन मायावती जी इलाहाबाद में हाकम सिंह को निलंबित करने का हुकुम सुना चुकी थीं, ठीक उसी समय लखनऊ में पूरा पुलिस महकमा दहशत में था। क्या एसएसपी, क्या डीआईजी, आईजी या फिर डीजीपी, सब के होश उड़े हुए थे।
सबको लग रहा था कि मुख्यमंत्री जी लखनऊ आने के साथ ही निलंबन का यह सिलसिला आगे बढ़ा देंगी और कई अफसर एक साथ निलंबित कर दिए जाएँगे। उस दिन लखनऊ के मड़ियांव थाना क्षेत्र में दो घरों में सात लोगों की हत्या कथित तौर पर सक्रिय कच्छा-बनियान गिरोह ने कर दी थी। उस समय इस गिरोह का बहुत आतंक था। पुलिस दबाव में सुबह ही आ गई थी। सक्रियता बढ़ गई थी। क्योंकि मारे गए सात लोगों में से पाँच एक ही परिवार के थे और इस परिवार के मुखिया सहारा समूह में अधिकारी थे।
मैं उन दिनों राष्ट्रीय सहारा अखबार में चीफ रिपोर्टर था। थोड़ी थोड़ी देर बाद मुझसे पूछा जाता कि पुलिस क्या कर रही है? अपराधी मिले या नहीं? मेरे पास पुलिस से पूछने के अलावा कोई चारा नहीं होता। एसओ, सीओ, एएसपी, एसएसपी जो बता देते, मैं उस बात को संस्थान के सीनियर्स को बता देता लेकिन सवाल खत्म होने का नाम नहीं ले रहे थे।
पूरी कंपनी परिवार के रूप में एकजुट थी। सब दुःखी थे। छोटे-छोटे बच्चों तक को नहीं बख्शा था बदमाशों ने। शव जिस किसी ने देखा, उसका कलेजा मुँह को आ गया। दुःखी मैं भी था। दिन के 11 बजे थे। पुलिस अचानक फिर काफी तेज हो चुकी थी। अधिकरियों ने दोबारा घटना स्थल का मुआयना करना शुरू कर दिया। महिलाओं के शरीर पर जो कुछ जेवर थे, बदमाशों ने उसे बहुत बेरहमी से खींच लिया था। उनके टुकड़े यत्र-तंत्र बिखरे पड़े थे। पुलिस के लोगों ने उसे शांति से उठा लिया। कुछ देर बाद एसओ मड़ियांव ने जानकारी दी कि पूरा का पूरा गिरोह पुलिस मुठभेड़ में मार दिया गया है। कुकरैल पिकनिक स्पॉट पर यह मुठभेड़ हुई है।
यह सूचना सुनने के साथ ही मैं घटना स्थल से दफ्तर की ओर भागा। इस जानकारी ने सबका दुःख कुछ हद तक कम किया। अपनों को मारने वाले अपराधियों को पुलिस ने मार गिराया, सहारा परिवार ने पुलिस दल को पुरस्कृत करने का फैसला किया। इसकी सूचना भी एसएसपी को दे दी गई।
यह सब चल ही रहा था कि आईजी इलाहाबाद हाकम सिंह के निलंबन की सूचना आम हो गई। दिन के दो बजे होंगे।
एसएसपी ने मुझे अपनी गाड़ी में बैठाया और इधर-उधर घुमाते रहे। मैंने उनसे पूछा तो बोले-पुलिस पार्टी को पुरस्कार वाली चिट्ठी बहन जी के नाम पर बनवा लेते हैं। शाम को बहन जी लौट रही हैं। उन्हें आप एयरपोर्ट पर ही यह पत्र दे देना। हम लोग साथ रहेंगे। बाद में पता चला कि सभी अधिकारी इस मामले में शामिल थे। खैर, मैं एयरपोर्ट पहुँचा। मेरे हाथ में मुख्यमंत्री के नाम लिखा हुआ सहारा समूह का पत्र था। वे एयरपोर्ट पर स्टेट प्लेन से उतरीं और कार की ओर बढ़ीं तो सबने मुझे आगे किया और लगभग गिड़गिड़ाने के अंदाज में मेरा परिचय और आने का प्रयोजन बताया लेकिन मायावती जी ने पत्र पकड़ा भी नहीं और काफ़िला चल पड़ा। सब हैरान-परेशान। लगा कि अब यहां के अफसरों की बारी है। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। अधिकारियों ने सब अपने पक्ष में कर लिया।
हैदराबाद की घटना पर आज मायावती जी का बयान टीवी पर देखा तो बरबस यह पूरा वाकया एक बार नजरों के सामने घूम गया। तीन-चार दिन बाद जो बातें अफसरों ने बताई वह यही थी कि अगर बदमाशों के मारे जाने की सूचना मुख्यमंत्री को नहीं दी गई होती तो कई अफसरों का उस दिन नपना तय था। यह और बात है कि बाद में इस घटना की भांति-भांति की जाँच हुई। रिपोर्ट पुलिस के खिलाफ गई लेकिन किसी का बाल बांका नहीं हुआ। उस घटना में पुलिस ने मड़ियांव स्टेशन से उठाकर गरीब लोगों को मार दिया था, जिनकी शिनाख्त भी न हो पाई और इस तरह पुलिस ने अपनी खाल बचा ली थी।
मौके पर जो जेवरात बरामद दिखाए गए थे, वे सब पुलिस वालों ने घटना स्थल से ही समेटे और वहाँ बदमाशों के पास बिखेर दिए थे। चूँकि, मारे गए लोगों का कोई नहीं था इसलिए उनकी लड़ाई जहाँ-तहाँ कागज और फाइलों में खो गई। कई दिन तक पुलिस को वाहवाही मिलती रही। आसपास के थानों की पुलिस उस टीम में शामिल होने को आतुर भी थी। सबको लग रहा था कि आउट ऑफ टर्न प्रोन्नति तय मिलेगी। हालांकि ऐसा कुछ हुआ नहीं। आज उस समय के ज़्यादातर अफसर रिटायर हो गए हैं। मायावती जी ने आज जब हैदराबाद पुलिस का समर्थन किया और यूपी पुलिस को वहाँ से सीखने की नसीहत दी तो बरबस यह बहुत पुरानी घटना याद आ गई।