दीपावली मनाने के बाद अरोरा-भगनानी परिवार यात्रा की तैयारियाँ कर चुका है। रात में पैकिंग आदि हो गई। सुबह सड़क मार्ग से निकलने की तय नीति के साथ सब सो गए। सुबह सब तैयार हुए लेकिन टीना ने बिस्तर नहीं छोड़ा था। सामान्य तौर पर वह ऐसा कभी नहीं करती। माँ को चिंता हुई तो कमरे में जाकर देखा। उसे तेज बुखार था। मिसेज अरोरा ने लौटकर जानकारी दी तो यात्रा रद्द करने की बात शुरू हो गई। यह सुनकर टीना आई और उसने कहा-आप सब यात्रा करें। मैं घर में हूँ। अभी डॉक्टर अंकल के पास चली जाऊँगी। बुखार ही तो है।
अनमने भाव से सब लोग टीना के प्रस्ताव पर तैयार हो गए लेकिन मनीष ने कहा कि वह रुक जाएगा। टीना ने उसे भी यात्रा पर जाने की जिद की लेकिन मनीष टस से मस नहीं हुआ। बल्कि उसने कहा कि सुरभि और मैं मिलकर टीना का ख्याल रखेंगे। आप चारों दादी जी को लेकर जाओ। फाइनली तय यह हुआ कि दादी भी रुकेंगी। इस तरह अरोरा और भगनानी दंपत्ति ने सहमति से यात्रा शुरू की।
सबसे पहले इन्होंने आगरा का प्लान किया हुआ था। वहाँ से फ़तेहपुर सीकरी, मथुरा, वृंदावन जाने का फैसला हुआ। सब चल पड़े। उधर, टीना ने भी डॉक्टर को दिखाने का फ़ैसला किया। मनीष और सुरभि भी उसके साथ हो लिए। टीना को देखकर डॉक्टर खुश हुए। बोले-ब्रिटेन से कब लौटी। क्या हुआ तुम्हें? धनतेरस को आई अंकल। कल रात तक मैं बिल्कुल ठीक थी लेकिन सुबह नहीं उठ पाई।
आज हम सबको बाहर जाना था। मम्मी-पापा और भगनानी अंकल-आंटी चले गए। मैं और मनीष रुक गए। जाँच-पड़ताल के बाद डॉक्टर ने कुछ दवाएँ दीं और टीना को आराम करने की सलाह दी। तीनों घर आ गए।
दादी ने पूछा-क्या कहा डॉक्टर ने? दवा दी या नहीं? हाँ-हाँ दादी, अंकल ने दवाएँ दे दी हैं। मैंने एक खुराक ले भी लिया है। अब आराम करूँगी। हाँ तो आओ मेरी गोद में लेट जाओ। जी दादी-टीना ने कहा और खुशी से लेट गई। दादी ने उसके बालों पर हाथ फेरना शुरू किया और तनिक देर बाद वह सो गई। मनीष भी बैठे-बैठे सोफे पर लेट गया। सुरभि भी माँ के पास चली गई।
घण्टे भर तक दादी केवल और केवल अपनी पोती को देखती रहीं। महीनों बाद वह उनके इतने करीब जो थी। जैसे ही टीना ने करवट बदली, दादी ने हाल पूछा। टीना ने कहा-जोर की भूख लगी है दादी मुझे। कुछ खाना है। यह कहते हुए उसने सुरभि की मम्मी को आवाज लगा दी। वह किचेन में थीं दौड़कर आ गईं। टीना की आवाज सुन मनीष भी जाग गया।
क्या हुआ बेबी? कुछ चाहिए आपको? सुरभि की मम्मी ने पूछा। जी आंटी। कुछ आपके हाथ का अच्छा सा तीखा सा खाना है। अभी लाई बिटियारानी।
उधर, अरोरा-भगनानी दंपत्ति की आगरा, फतेहपुर सीकरी, मथुरा यात्रा पूरी हो गई। अब यह परिवार आगे की यात्रा पर निकल पड़ा। ये लोग दिल्ली होते हुए हरिद्वार, ऋषिकेश के लिए निकल पड़े। वहाँ दो दिन गुजारने के बाद वापसी का प्रोग्राम था लेकिन भगनानी दंपत्ति ने पहाड़ों पर घूमने का प्लान बनाया। बोले-कौन रोज-रोज आता है भाई साहब। आए हैं तो दो-तीन दिन के लिए घूम लेते हैं।
अरोरा ने कहा-ठीक रहेगा। हम चलेंगे। ऋषिकेश में माँ गंगा की लहरों को देखते हुए यह सब कुछ तय हुआ। रात्रि विश्राम के बाद अगली सुबह गाड़ी आगे के लिए निकल पड़ी। सुबह निकलने से पहले दोनों ही दंपत्तियों ने मनीष-टीना से फोन पर बातचीत कर आगे का प्रोग्राम साझा किया। दोनों ने कहा-अगर हम भी साथ होते तो खूब मस्ती करते। ये बुखार भी अभी आना था।
इस यात्रा के दौरान दोनों ही दंपत्ति बच्चों की शादी का फ़ैसला भी कर चुके हैं। पढ़ाई पूरी करते ही यह शुभ काम होना है। गाड़ी पहाड़ के सर्पीले रास्तों पर बढ़ी जा रही थी। सुमधुर भजन बज रहा था। चारों कभी पहाड़ी तो कभी घाटी को निहारे जा रहे थे। उत्तराखण्ड है बहुत खूबसूरत, सबकी जुबान पर यही था। अंधेरा हो चला था। अब अगले पड़ाव पर पहुँचकर आराम करने के इरादे से ड्राइवर से पूछा। कितना समय लगेगा भैया-बस एक घण्टा और बाबू जी।
ठीक है आराम से चलिए। कोई जल्दी नहीं है। इसी संवाद के बीच गाड़ी अंधे मोड़ पर पहुँची और सामने से आ रही कार को बचाने के चक्कर में नीचे गहरी खाई में समा गई। इस हादसे की सूचना सुबह पुलिस को हुई, जब ग्रामीण खेतों में काम करने पहुँचे। सभी का जीवन समाप्त हो चुका था।
उधर, टीना बेचैन थी। फोन पर फोन किये जा रही थी लेकिन फोन नहीं उठ रहा था। मनीष भी इसी काम में जुटा था। आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ लेकिन तभी मनीष को फोन पर एक अनजानी सी आवाज सुनाई पड़ी। पापा के फोन पर अनजानी आवाज से वह सहम गया और जो जानकारी मिली उसे सुनने के बाद जमीन पर धड़ाम गिरा। टीना भागी हुई पहुँची।
मनीष ने हादसे की जानकारी दी। चीख-पुकार के बीच सबके सब कुछ बड़ों के साथ उत्तराखण्ड पहुँचे। शवों का अंतिम संस्कार किया और वापस आ गए। अब दादी ही इन दोनों का सहारा थीं और मनीष-टीना, दादी के। कुछ भी नहीं सूझ रहा। सब एक दूसरे की ओर आस भरी नजरों से देख रहे थे। अब देखना होगा कि टीना-मनीष की जिंदगी क्या करवट लेती है? मम्मी-पापा के असमय निधन के बाद भरपाई तो बहुत मुश्किल है लेकिन उम्मीद की जानी चाहिए कि समय के साथ चीजें ठीक होंगी। घाव भरेंगे।

उम्मीद