जो कहानी आज पेश-ए-खिदमत है, वह है तो बहुत पुरानी पर, इसमें सन्देश बहुत गहरा छिपा हुआ है| अगर इस कहानी से आज का नौजवान कुछ भी सीख ले तो उसकी बहुत बड़ी मदद होगी| मेरी माई बचपन में इसे अक्सर सुनाया करती थीं| कहानी कुछ यूँ है-एक व्यापारी था| उसके बच्चे ने एक बकरी खरीद कर लाने को कहा| बच्चे की ख़ुशी के लिए व्यापारी ने पूछताछ शुरू की| पता चला कि बकरी की कीमत एक रुपए है| व्यापारी निराश हुआ क्योंकि उसके पास सिर्फ 50 पैसे ही थे| और वह अपने बच्चे की माँग पूरी नहीं कर पा रहा था| लेकिन उसने इस बात का एहसास बेटे को नहीं होने दिया| व्यापारी ने कहा- बेटा यह बकरी बहुत मंहगी है| अगली बार व्यापार करके जब मैं लौटूंगा तो तुम्हारे लिए दो बकरी खरीद दूँगा| बच्चा खुश हुआ लेकिन पिता से सवाल पूछा कि आखिर अभी अगर बकरी मंहगी है तो कुछ दिन बाद सस्ती कैसे हो जाएगी?
पिता ने कहा-यह बात मैं बाद में बताऊंगा| बच्चे ने जिद पकड़ ली| उसे तुरंत जानना था| उसने कहा कि जब आप व्यापार के सिलसिले में बाहर रहते हो तो मैं बोर होता हूँ| इसीलिए तो बकरी दिलाने को कह रहा हूँ| उसके साथ मैं खेलूँगा| वह हमें दूध भी देगी और बच्चे भी| व्यापारी ने कहा-अभी उसके पास सिर्फ 50 पैसे हैं| अगर वह बकरी खरीदना चाहेगा तो 50 पैसे का इंतजाम और करना होगा, इसके लिए चाहे कर्ज लूँ या कोई और तरीका निकालूँ| अगली बार जब वापस घर आऊंगा तो मेरे पास ज्यादा पैसे होंगे| तुम्हें दो बकरी दिलवा दूँगा| कहानी का सन्देश यही है कि अगर हमारे पास 10 रुपए हैं और सामान की कीमत दो-चार रुपए है तो वह सामान बहुत सस्ता कहा जा सकता है| अगर सामान की कीमत 15 रुपए है तो फिर वह सामान बहुत मंहगा कहा जाएगा| यह परिभाषा अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग हो सकती है|
यह कहानी आज भी मुझे मौजू लगती है क्योंकि आज का ज्यादातर युवा पैसे की कीमत बहुत नहीं समझना चाहता है| छोटी-छोटी चीजों के लिए वह अपने मम्मी-पापा से नाराज हो जाता है| वह बहुत जल्दी में है और सब कुछ आनन-फानन हासिल करना चाहता है| इसके लिए उसे चाहे कोई कीमत चुकानी पड़े| यह उस देश का युवा है, जहाँ देश भर की संपत्ति का 50 फीसद हिस्सा सिर्फ चंद लोगों के पास है| मतलब साफ़ है कि आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा आज भी औसत से भी कमतर जीवन गुजार रहा है| बड़ी संख्या में लोग हमारे अपने ही देश में रोज भूखे सोने को अभिशप्त हैं| ऐसे में छोटी-छोटी माँग को लेकर नाराज होना या जिद करना, मम्मी-पापा को मुश्किलों में डालने वाला हो सकता है| यह सब कुछ तब है जब यह साबित करने की जरूरत किसी को भी नहीं है, कि मम्मी-पापा से बेहतरीन दोस्त इस दुनिया में कोई और नहीं है| अगर उनके पास पैसे हैं और वे उस समय खर्च नहीं कर रहे हैं तो मान लिया जाना चाहिए कि कोई ठोस बात होगी| यह अपना देश ही है जहाँ आज भी अपने लाल को पिता से छिपाकर पैसे देने वाली कोई और नहीं, माँ ही होती है और तमाम तकलीफें झेलकर भी माँग पूरी करने वाला कोई और नहीं केवल और केवल पिता ही है| वह भी बिना शर्त| इस दुनिया में कोई और रिश्ता ऐसा नहीं है जिसमें कोई शर्त न हो| चाहे कोई दोस्त हो, भाई हो, बहन हो या फिर कोई और| सबमें कुछ न कुछ चीजें आगे-पीछे जुड़ी ही रहती हैं| इसे समाज के हर तबके में चाहे वह गरीब हो या फिर अमीर, हर जगह देखा जा सकता है|
इतनी सारी सच्चाई के बीच भी हम अपने मम्मी-पापा को वह सम्मान नहीं दे पा रहे हैं, जो हर हाल में उन्हें मिलना चाहिए| इस सच को देखने के लिए वृद्धाश्रम जाना होगा| ऐसी हर जगह पर बुजुर्गों की लाइन लगी है अंदर जाने के लिए और जो अंदर हैं, वे सब अपनों के इन्तजार में हैं| उनकी आँखें पथराई जा रही हैं लेकिन अपने हैं कि छोड़कर गए तो फिर न लौटे| मेरी आने वाली पीढ़ी से दरख्वास्त है कि वे मम्मी-पापा को अपनी पूँजी का हिस्सा मानना शुरू करें| इसी में आपकी, घर-परिवार की और देश की भी भलाई है| बुजुर्गों को सम्मान देकर आप खुद भी सम्मानित महसूस कर सकते हैं, और बात जब मम्मी-पापा की हो तो और महत्वपूर्ण हो जाती है| उन्हें केवल और केवल आपका प्यार चाहिए| थोड़ा सा समय चाहिए| बस, इससे ज्यादा की उम्मीद वे नहीं करते| आइए प्राण करें कि आज से और अभी से हम सब अपने मम्मी-पापा को वह सब कुछ देंगे, जो उन्हें चाहिए|