‘डार्क वेब’ के खतरों से बच्चों को क्यों बचाया जाना जरुरी है?
यह सवाल मेल पर पूछा है स्वाति ने| बहुत मौजू सवाल है| ‘डार्क वेब’ के बारे में मुझे बहुत प्राथमिक जानकारी थी| मैंने पढ़ा और जो कुछ भी जान समझ पाया, उसे आपसे साझा कर रहा हूँ| ‘डार्क वेब’ के खतरों को जानने से पहले यह जानना बहुत जरुरी है कि आखिर यह है क्या? हालाँकि, इंटरनेट की दुनिया के लोग इस शब्द और इसके खतरों से खूब वाकिफ़ हैं लेकिन सामान्य लोग इसे अभी भी नहीं समझते|
मेरी समझ से इंटरनेट दुनिया का शैतान है ‘डार्क वेब’| अब जब शैतान है तो खतरे ही खतरे हैं और इससे बच्चों को बचाना हमारी जिम्मेदारी भी है| पिछले दिनों ‘ब्लू व्हेल’ की बड़ी चर्चा थी| कई बच्चों ने इसके चक्कर में ख़ुदकुशी कर ली थी| यह कहने को तो गेम था लेकिन इसकी जड़ें इसी शैतान के आसपास छिपी हुई थीं| इसके जरिए शोषण व बुरे बर्ताव आज भी किए जा रहे हैं। दुनिया भर के अवैध व्यापार व ऑनलाइन बाल यौन दुर्व्यवहार के आर्डर तक इसके जरिए दिए-लिए जा रहे हैं| ‘डार्क वेब’ के जरिए दुनिया भर के सभी अनैतिक काम हो रहे हैं| चाहे ड्रग्स का धंधा हो या फिर हथियारों की कालाबाजारी| सब कुछ यहाँ हो रहा है| इससे बचने का एक मात्र तरीका सिर्फ और सिर्फ जागरूकता है|‘डार्क वेब’ इन्टरनेट का वह हिस्सा है, जो आम लोगों की नज़रों में नहीं है| ‘डार्क वेब’ की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां अपराधी कुछ भी करे, उसके बारे में पता लगाना मुश्किल काम है|
अब बड़ा सवाल यह है कि जब देश 5जी नेटवर्क की ओर बढ़ रहा है, मतलब इंटरनेट की स्पीड और बेहतरीन होगी तब भला हम अपने बच्चों को किस तरह इन खतरों से बचा पाएँगे| यह बहुत जरुरी बात है| जब हम इन्टरनेट चलाते हैं, तो सर्च इंजन हम पर निगरानी रखता है| हमारी लोकेशन और ईमेल जैसी जरुरी जानकारी सेव कर लेता है, ताकि अगर हम कुछ गैरकानूनी करें तो उसे पता चल सके| ‘डार्क वेब’ में ऐसा नहीं होता| यहाँ शिकारी की पहचान गोपनीय रहती है| किसी को नहीं पता चलेगा कि आखिर हम किसके झांसे में फंस जा रहे हैं| मीठी-मीठी बातें, बड़ी-बड़ी बातें करने वाला वह बंदा है कौन? इसी बात का फायदा विकृत सोच वाले लोग उठाते हैं और आपराधिक कृत्यों को करने के लिए प्रेरित होते हैं| ‘डार्क वेब’ की शुरुआत 2004 में हुई थी| इसे पश्चिमी देशों की फ़ौज ने अपने लिए बनाया था, ताकि वह बिना किसी की नज़र में आए एक दूसरे के साथ जरूरी जानकारी साझा कर सकें| पर, दुर्भाग्यवश इसका दुरुपयोग इतना ज्यादा होने लगा कि, इस पर अंकुश लगाना फ़िलहाल मुश्किल सा हो गया है| अब जब तक सरकारें इस पर अमल करेंगी तब तक हम हाथ पर हाथ धरे तो नहीं बैठे रह सकते| हमें अपने बच्चों को इस संजाल से बचाना ही होगा| उचित होगा कि हम अपने घर के कॉमन एरिया में कम्प्यूटर सिस्टम लगाएँ| बच्चे उसी सिस्टम से अपने काम करें| इससे सब कुछ सबकी नजरों में होगा| कोई बेवजह इंटरनेट का इस्तेमाल भी नहीं करेगा|
पूरी दुनिया में बाल अधिकारों / हितों पर काम करने वाली संस्था संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) ने भी अपनी एक रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि बच्चों को डिजिटल दुनिया के खतरों से बचाने और सुरक्षित ऑनलाइन सामग्री तक उनकी पहुँच बढ़ाने की दिशा में अभी बहुत काम किए जाने की जरूरत है| इस दिशा में अभी जो कुछ काम हुआ है या हो रहा है, वह नगण्य है| भारत जैसे विकासशील और बड़ी आबादी वाले देश में इसकी जरूरत कुछ ज्यादा शिद्दत से महसूस की जा रही है|
स्टेट ऑफ़ वर्ल्डस चिल्ड्रेन 2017 : चिल्ड्रेन इन ए डिजिटल वर्ल्ड नाम से जारी रिपोर्ट में यूनिसेफ ने कहा है कि दुनिया भर में हर तीसरा इंटरनेट उपयोगकर्ता बच्चा है। इसलिए इस मुद्दे पर काम किए जाने की जरूरत है| रिपोर्ट में डिजिटल विभाजनों को स्पष्ट करते हुए बच्चों की सुरक्षा व स्वास्थ्य पर इंटरनेट और सोशल मीडिया के प्रभावों के संबंध में चल रही बहस-मुबाहिसों की छानबीन की गई है| रिपोर्ट में इंटरनेट के खतरों से बच्चों को बचाने की कवायद तो की गई है लेकिन सीखने के लिए मौजूद अवसरों को और एक्सप्लोर करने की बात भी यह रिपोर्ट करती है| कहा गया है कि यह सरकारों को तय करना है कि किस तरह वे अपने बच्चों को इसके खतरों से बचाते हुए सीखने, समझने के मौके देती हैं| रिपोर्ट कहती है कि दुनिया भर की 48 फीसदी आबादी ऑनलाइन सेवा का इस्तेमाल करती है, जिसमें 71 फीसदी युवा हैं। ऐसे में सरकारों, निजी क्षेत्र, परिवारों और खुद बच्चों के सामूहिक कार्य से ही इंटरनेट को ज्यादा सुरक्षित और बच्चों के लिए पहुंच योग्य बनाया जा सकता है।
इंटरनेट की दुनिया जैसी भी हो, इससे हम बच नहीं सकते| इसमें गोता लगाना ही होगा| देखना यह है कि इस महासमुद्र से हम अमृत लेकर बाहर आते हैं या विष| डिजिटल वर्ल्ड में हमारे सामने चुनौती यह है कि खतरों को कम करते हुए हम अपने बच्चों को इंटरनेट के अधिकतम फायदे किस तरह मुहैया कराएँ? हम सभी जानते हैं कि इंटरनेट वयस्कों के लिए डिजाइन किया गया था, लेकिन इसका इस्तेमाल ज्यादातर बच्चे और युवा कर रहे हैं| इस्तेमाल करते हुए जिसकी समझ विकसित हो गई है, वह तो बच जा रहा है लेकिन बच्चों में समझ विकसित होने में वक्त लगेगा| लेकिन इसके दुष्प्रभाव उन पर तेजी से पड़ने शुरू हो गए हैं| क्योंकि अब ज्यादातर मोबाइल में इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध है| हरदम ऑनलाइन की सुविधा हमें मिल रही है लेकिन इसके खतरे भी कम नहीं हैं|