हेलो सर, मैं 22 वर्ष की राजपूत लड़की हूँ और बीते तीन वर्ष से एक पंजाबी युवक से प्यार करती हूँ| इस सिलसिले में मैंने अपने पैरेंट्स से चर्चा की तो वे बहुत गलत तरीके से पेश आए| मेरे पिता जी गाँव में रहते हैं और संकुचित विचार वाले हैं| मैं जॉब कर रही हूँ| उसे छोड़ने के दबाव के साथ ही मेरी शादी किसी ऐसे व्यक्ति से तय कर दी गई है, जिसे मैं जानती तक नहीं हूँ| मेरी ख़ुशी का ख्याल भी मेरे परिवार ने नहीं रखा| मेरा सवाल यह है कि आखिर पैरेंट्स क्यों इस तरह के रिश्ते को नहीं समझना चाहते? क्या शादी के सिलसिले में जाति सब कुछ है? और यह तब है जब सब जानते हैं कि कानून उन्हें ऐसा करने से रोकता है? क्या अपनी पसंद का पार्टनर चुनना अपराध है?
यह सवाल मुझे मेल पर मिला है| मैंने इस युवती से अनुरोध किया कि वह मुझे बात कर ले लेकिन मेल पर ही उसका रिप्लाई आया कि ऐसा संभव नहीं है| इसका मतलब साफ़ है कि यह बेटी संकट में है| उस पर तगड़ा पहरा है| बेहद संवेदनशील सवालों के जवाब मैं खुद लिख और मिटा रहा हूँ| लेकिन एक बेटी ने सवाल पूछा है तो जवाब भी देना होगा| मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि अपनी पसंद का पार्टनर चुनना अपराध कतई नहीं है| कानून भी इसमें देश की हर उस युवती के साथ है, जो अपनी पसंद के साथी के साथ विवाह करना चाहती है| नौकरी छोड़ने का दबाव बनाना या नौकरी छोड़वाना भी इस समस्या को कोई विकल्प नहीं है| और किसी ऐसे युवक से शादी तय कर देना या शादी करा देना, जिसे बेटी जानती तक नहीं, इसे भी उचित नहीं कहा जा सकता| बल्कि इसमें जोखिम ज्यादा है| अगर बेटी किसी का साथ चाहती है और हम उसे किसी और के साथ जोर-दबाव देकर विदा तो कर सकते हैं लेकिन यह सवाल हर पैरेंट्स को खुद से पूछना होगा क्या बेटी वहाँ खुश रहेगी? क्या पति और ससुराल के अन्य रिश्तों के साथ न्याय कर पाएगी? ससुराल में उसने अपने रिश्ते का खुलासा कर दिया तो क्या होगा? बेटी को दुखी देखकर क्या ऐसे पैरेंट्स खुश रह पाएँगे? इन सभी सवालों का जवाब पुख्ता तौर पर होगा, नहीं|
अब समझना यह जरुरी है कि जिस माता-पिता ने अपनी फूल जैसी बच्ची को गोद में रखकर पाला, वे भला अचानक दुश्मन क्यों बन गए? दुनिया भर में जितने रिश्ते हैं, उनमें पैरेंट्स ही हैं, जो अपने बच्चे की हर हाल में ख़ुशी चाहते हैं| वे अपने बच्चे को तकलीफ़ में नहीं देख पाते| पर, जब बच्चों के मन का कुछ भी नहीं होता है तो वे सबसे पहले पैरेंट्स को ही दोषी ठहराते हैं| यूँ तो 22 की उम्र भले ही कानूनन शादी की इजाजत देता है लेकिन दुनियादारी की समझ भी देता है, इस बात की गारंटी नहीं ली या दी जा सकती| शुरूआती प्यार की वजह कई बार शारीरिक आकर्षण होता है या ऐसा भी कह सकते हैं कि एंटी सेक्स के प्रति आकर्षण बहुत स्वाभाविक है| आज भी पैरेंट्स जहाँ कहीं भी अपनी बेटी का रिश्ता तय करते हैं, सोचते हैं कि परिवार उनसे अच्छा हो| हर दृष्टि से संपन्न हो जबकि बहू तलाशने के मामले में इस बात का ध्यान प्रायः कम ही रखा जाता है| लड़की अच्छी है और बारात के स्वागत सत्कार भर की क्षमता वालों की बेटियों का विवाह बड़े घरों में होते देखा जाना आम बात है| लेकिन इस बेटी के मामले में पिता को जरुर एक बार उस युवक से मिलना चाहिए, उसके परिवार से भी मिलना चाहिए| अगर उसका परिवार इस स्थिति में है कि बेटी को खुश रख पाएगा तो विवाह कर देना चाहिए| जिस बेटी को आपने नाजों से पाला-पोसा| घर से दूर पढ़ने-नौकरी करने के लिए भेजा, उसी की ख़ुशी के लिए इस रिश्ते को ठोंक-बजाकर मंजूरी भी दे देना चाहिए|
अगर यह संभव नहीं है तो उन कारणों पर बेटी से बात होनी चाहिए| केवल जाति को आधार बनाकर बात अब नहीं हो सकती| अगर रिश्ता तीन साल पुराना है तो नए युवक से शादी के बाद भी दिक्कतें आएँगी| मेरी नजर में तीन परिवार भरपूर परेशान होंगे| सब कुछ सब जान भी जाएँगे| एक बेटी का मायका, उसका ससुराल और तीसरा उस युवक का परिवार, जिससे वह प्यार करती है| हालाँकि, मेल में इस बात की जानकारी नहीं है कि युवक का परिवार शादी को राजी है या नहीं| लेकिन मैं यह मान लूँगा कि वह परिवार जरुर राजी होगा, क्योंकि पंजाबी परिवार इस मामले में अलग तरीके से सोचते हैं| वैसे भी अब समय की माँग है कि परिवारों के सुकून के लिए ऐसा करना चाहिए| मैं तो इस युवती के पिता से अपील करूँगा कि वे एक बार बेटी की सुनें जरुर| अब तक आपने सब कुछ उसके लिए किया है तो भला अब क्यों कदम पीछे खींच रहे हैं? मेल लिखने वाली बेटी से मुझे यह कहना ही होगा-नाव जब मझधार में फँसी हो और आप कुछ न कर सकने की स्थिति में हो तो उसे जस का तस छोड़ देना चाहिए| कई बार जान बच जाती है|